भोग अर्पित करने के लिए मंत्र
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भोग अर्पित करने के लिए मंत्र

जानें इसे पढ़ने और जाप करने के अद्भुत लाभ। पूजा में भोग अर्पित करने से भगवान की कृपा, आशीर्वाद और घर में सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने का सरल उपाय।

भोग मंत्र के बारे में

भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म में भगवान को भोग अर्पित करना एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र परंपरा है। यह केवल भोजन चढ़ाना नहीं, बल्कि ईश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा, कृतज्ञता और प्रेम व्यक्त करने का एक गहरा आध्यात्मिक कार्य है। यह माना जाता है कि जब हम पवित्र भाव से ईश्वर को कुछ अर्पित करते हैं, तो वह हमारी भक्ति को स्वीकार करते हैं और उस प्रसाद के माध्यम से हमें अपना आशीर्वाद लौटाते हैं।

भगवान को भोग क्यों अर्पित किया जाता है?

  • कृतज्ञता का भाव: हम जो कुछ भी खाते हैं, वह परमात्मा की देन है। अन्न और जल को पहले ईश्वर को अर्पित कर हम उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं।

  • भक्ति और समर्पण: भोग चढ़ाना यह दर्शाता है कि भक्त अपना सबकुछ ईश्वर को समर्पित करता है। यह पूर्ण समर्पण और निष्काम भावना का प्रतीक है।

  • शुद्धता और प्रसाद: जब भोजन ईश्वर को अर्पित होता है, तो वह पवित्र बनकर प्रसाद कहलाता है, जिसे ग्रहण करने से मानसिक और आत्मिक शुद्धि होती है।

  • सकारात्मक ऊर्जा का संचार: भोग लगाने से घर में पवित्रता आती है, नकारात्मकता दूर होती है और वातावरण में एक दिव्य ऊर्जा फैलती है।

  • मनोकामनाओं की पूर्ति: भक्तिभाव से अर्पित भोग देवी-देवताओं को प्रसन्न करता है, जिससे वे कृपा करके भक्त की इच्छाएँ पूर्ण करते हैं।

  • अहंकार का त्याग: भोग अर्पण यह सिखाता है कि हम ‘कर्ता’ नहीं हैं, बल्कि ईश्वर की इच्छा से ही सब कुछ होता है।

  • आत्मीय संबंध: जब हम भगवान को भोग लगाते हैं, तो यह संबंध केवल पूज्य भाव में नहीं, बल्कि पारिवारिक भाव में बदल जाता है। जैसे भगवान हमारे परिवार के सदस्य हों।

भोग अर्पण का मंत्र

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**"त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये।** **गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर॥"**

अर्थ: “हे गोविंद! यह वस्तु आपकी ही दी हुई है और मैं इसे आपको ही अर्पित करता हूँ। कृपया इसे स्वीकार करें और मुझ पर कृपा करें।” यह मंत्र अर्पण की भावना को स्पष्ट करता है कि हम जो भी अर्पित करते हैं, वह मूलतः उन्हीं का है।

भोग अर्पण की विधि

  • शुद्धता का ध्यान रखें: भोजन बनाने वाले को स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनने चाहिए। मन में ईश्वर के प्रति भक्ति होनी चाहिए। भोजन सात्विक और शुद्ध होना चाहिए। लहसुन, प्याज, अंडा, मांस या शराब से युक्त नहीं।

  • जूठन वर्जित है: भोग बनाने या परोसने के दौरान उसे चखना नहीं चाहिए। भोग पूरी तरह अछूता और नया होना चाहिए।

  • भोग बनाने की प्रक्रिया: साफ वातावरण और शुद्ध हाथों से ही भोजन तैयार करें। यदि संभव हो, तो लकड़ी, मिट्टी या तांबे-पीतल के बर्तनों का प्रयोग करें।

भोग लगाने की प्रक्रिया

  • स्थान चयन: भगवान की मूर्ति या चित्र के समक्ष स्वच्छ स्थान पर भोग रखें।
  • थाली सजाना: भोजन को सुंदर और व्यवस्थित रूप से एक स्वच्छ थाली में परोसें।
  • शुद्ध जल रखें: भोग के साथ एक कटोरी में जल अवश्य रखें।
  • दीप और धूप: दीपक जलाकर धूप अर्पित करें।
  • प्रार्थना या मंत्र जाप करें: अपने इष्टदेव के मंत्र जैसे “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”, “ॐ नमः शिवाय”, या विशेष भोग मंत्र का उच्चारण करें।
  • भोग समर्पण का समय: भोग अर्पण करने के बाद उसे कम से कम 5 से 10 मिनट तक भगवान के समक्ष श्रद्धा भाव से रखें, यह भाव रखते हुए कि वे उसे स्वीकार कर रहे हैं।
  • प्रसाद वितरण: भोग ग्रहण करने के बाद, उसे हटाकर प्रसाद के रूप में परिवार के सदस्यों और अन्य भक्तों में वितरित करें।

भगवान को भोग अर्पण करना केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक गहरा आत्मिक संवाद है। यह हमें विनम्रता, समर्पण और ईश्वर के प्रति सच्चे प्रेम का अभ्यास कराता है। जब हम श्रद्धा और शुद्ध मन से अर्पित करते हैं, तो वह भोजन केवल प्रसाद नहीं, बल्कि ईश्वर का आशीर्वाद बन जाता है, जो हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का स्रोत बनता है।

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Published by Sri Mandir·October 18, 2025

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